अनुकम्पा |
व्यक्तियों में प्रधान जो है बुद्धिमान
बुद्धिमानों का कमान है भाषा ज्ञान
ज्ञानों की विशेषता विविध भाषा ज्ञान
विविध भाषाओँ के जानकार सचमुच महान l १ l
है रत्न साहित्य, कला संस्कृति का
साहित्य का है रत्न भाषा विशिष्टता
इन रत्नों के जो भी है रत्नाकर,
उनको मेरा ये सत-नमस्कार
दे कृपा स्वंग अब माँ शारदे
पाउ मैं भाषा ज्ञान, जो हूँ तृण सामान
जिनसे भी मिलेगी पथ, मै अनुचर उनका
जीवन भर करूंगा उनका मै गुणगान l २ l
पाठको से निवेदन है कि अनुकम्पा कविता कैसी लगी, अपनी राय टिपण्णी करके अवस्य बताएं l
उत्तम हे भ्राता श्री।
जवाब देंहटाएंबस कुछ व्याकरनात्मक त्रुटियां हैं।
धन्यवाद
हटाएंAti uttam
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंthanks
हटाएंVery nyc
जवाब देंहटाएंभरत जी शब्दों की अशुद्धियों पर ध्यान दें | रचना बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित है |
जवाब देंहटाएंव्यक्तियों , विशिष्टता आदि
धन्यवाद अजय जी, सही कर दूँगा, सलाह के लिए धन्यवाद
हटाएंटिप्पणी से मोडरेशन व्यवस्था को हटा दें
जवाब देंहटाएंहटा दिये अजय जी
हटाएंLikhte rahiye achhi kavita hai
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंAchha h
जवाब देंहटाएंBhai g first class ������
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबहुत सुंदर ,जय माँ शारदे नमन
जवाब देंहटाएंधञबाद्, ज्योति जी
हटाएंnice
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