बच्चपन का प्यार
प्यार शब्द के अनुभुती से ही जीवन में उमंग की लहर दौड़ जाती है l प्यार का पहला अक्षर ही अधुरा है परंतु अधुरा प्यार ज़िन्दगी मे कभी नहीं भुलाया जा सकता है l जीवन के अनेक पड़ाव पर पहले प्यार की याद आती रहती है l आज मैंने दो बच्चों को जब कहते सुना "मुझे तुमसे प्यार है" तो मुझे अपने स्कूल के दिनों की याद आगयी l बात उन दिनों की है जब मै छठी कक्षा मे पढ़ता था l मई का महिना था और मै सुबह उठ कर बैठा था जैसे एक अवाक मुरत हो l यह प्रतीदिन के दिनचर्या से भिन्न था l मैं अपने रात्रि के सपने के बारे मे सोच रहा था कि वो स्वपन सुन्दरी कौन थी ? जिसे मैने सपने मे देखा था l उसके काले लम्बे बाल, झील सी आँखें, खीलता कमल सा चेहरा, जो देखने मे बिल्कुल स्वर्ग की अफ़सरा लग रही थी l आज से पहले मैने इतनी खूबसूरत लड़की कभी नहीं देखी थी l आँखो के सामने उसका चेहरा घूम रहा था परंतु याद नहीं आरहा था कि है कौन ? मेरे पापा काम पे जाते समय बोले कि जा के मुह हाथ धो ले और नास्ता बना के रख दिया है खा लेना, मै जा रहा हूँ l खाना मेरे चाचा और पापा ही बनाते थे क्योंकि मेरी माँ गॉंव में रहती थी l मैं उसके बारे मे सोचते हुये मुह हाथ धोकर नास्ता कर रहा था लेकिन दिमाग मे उसी का चेहरा घूम रहा था l नास्ता करने के बाद मै अपने दोस्त सुरेंद्र के पास गया और सारी बात बता दिया l उसने कहा सपना था भुल जा और अपने स्कूल का होमवर्क कर ले जाकर l मैने कहा अभी मै होमवर्क नहीं करूंगा, चल बाहर चलते है l हम हमेशा खाली समय मे, गली मे लगे ऑटो मे बैठकर घंटों बातें करते रहते थे l रोज़ की तरह उस दिन भी ऑटो मे जाकर बैठ गये और बातें करने लग गये l करीब आधे घंटे बाद एक लड़की अपने छोटे भाई के साथ उसी ऑटो के बगल मे बात कर रही थी l मेरी नज़र उस पर पड़ी और हट नहीं रही थी l जब वो वहाँ से चली गई तो उसके जाते ही मैने सुरेंद्र से कहा " मैने इस लड़की को कही देखा है पर कहा ये याद नहीं आ रहा है" l फ़िर मुझे याद आया ये तो वही सपने वाली लड़की है l मुझे सपने और हक़िक़त, दोनों पे यकीन नहीं हो रहा था कि किसी के साथ ऐसा भी हो सकता है l मैने सुरेंद्र से कहा कि मुझे इस लड़की से दोस्ती करना है l चल उसे ढूँढते है l इधर उधर काफी ढूँढा l भरी दोपहर मे करीब एक घंटे तक ढूंढा, पर नहीं मिली l थककर हम दोनों घर आगये l रोजाना अपना काम करने के बाद जब भी मुझे समय मिलता तो मै उसे ढूँढने गोलियों मे निकल जाता पर वो नहीं मिलती l मै हमेशा सुरेंद्र से एक ही बात पुछता था । वह लड़की कब मिलेगी l उसका एक ही जबाब होता मिल जयेगी l एक दिन मै जब शाम को गली मे आरहा था तो वह लड़की जाते हुये दिखी l मैं उसके पिछे पिछे जाने लगा l मुझे डर भी लग रहा था कि कोई कुछ कह ना दें l वह हमारी गली के आखिरी के पहले वाले मकान मे रहती थी l मै खुशी के मारे समाँ नहीं रहा था l जैसे मुझे मेरी मंज़िल का ठिकाना मिल गया l आकर सबसे पहले मैने सुरेंद्र को ये बात बताया l फिर तो दिन रात उसी के बारे मे सोचता रहता था l मेरा ज्यादा समय गली मे बितता था l हमेशा इंतज़ार मे रहता था कि कब वह इधर से गुज़रे और उसकी एक झलक मिल जाए l जब भी उसे देखता था दिल को एक सकून मिलता था l मुझे समझ नहीं आरहा था ये क्या हो रहा है l मैने सुरेंद्र से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है तो उसने बताया शायद तुझे प्यार हो गया है l इसे प्यार कहते है मुझे पता नहीं था पर मै उसके बात को मान लिया क्योंकि वह मेरे से ऊँची कक्षा में पढ़ता था l कुछ दिनों बाद मुझे उसका नाम पता चला "दुनेश" l
जीवन का एक सच्च पता
चला था की अपने से ज्यादा भी किसी का नाम अच्छा लग सकता है । ऐसा लग रहा था की दुनेश एक नाम नहीं मेरे लिए पूरा संसार है
। अब दिन रात सुरेंद्र से दुनेश के बारे में बातें
करना । उसके बारें में सोचना मुझे अच्छा लगता था । उसके बारें में बातें करते करते कब समय बीत जाता पता ही
नहीं चलता था । इसी तरह पाँच महीने
कब बीत गए पता ही नहीं चला । दिवाली आने वाली थी
और मैंने सोच लिया था कि दिवाली के सुभ अवसर पर उसको अपने दिल कि बात बताऊंगा । मेरे कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की उसके पड़ोस में रहती थी । वह मेरी दोस्त थी । बड़ी मुश्किल से मैंने उसे अपना ग्रीटिंग कार्ड उसे देने के
लिए राजी किया । अंततः वो मान गयी
मेरा ग्रीटिंग कार्ड उस तक पहुंचाने के लिए । पर मुझे क्या मालुम
था जिसे मैं हमदर्द समझ रहा था, दोस्त समझ रहा था वही दोस्त के रूप में दुश्मन थी । मैंने खुद से एक बहुत ही प्यारा ग्रीटिंग कार्ड बनाया । जिसने भी ग्रीटिंग कार्ड देखा, कहा मुझे दे दो
परन्तु मैंने कहा नहीं ये किसी और के लिए बनाया है । मैंने किसी तरह
ग्रीटिंग कार्ड अपने लड़की दोस्त को दे दिया दुनेश को देने के लिए । उसके बाद बड़ी बेसब्री से उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा । मानो एक एक पल सदियों कि तरह बीत रहा था । शाम को अपने घर के बाहर गली में खड़ा था तब मेरी मित्र
के साथ वो आती हुयी दिखी । मेरे दिल कि धड़कन तेज़ हो गयी । वह आयी और ग्रीटिंग कार्ड फारकर मेरे मुँह पे मारकर बोली
तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं तुम्हारी दोस्त बनूंगी । और दोनों हसते हुए वहाँ से चली गयी । मेरे मुँह से एक शब्द तक नहीं निकला । पर मैं रो रहा था । मेरे आँखों से अश्रु के धारा बह रही थी । सब दिवाली मना रहे थे और मैं बैठकर गली में रो रहा था । सबने पूछा क्या हुआ उदास क्यों है । पर मैं क्या बताता । उस रात मै कुछ भी नहीं खाया और सोने चला गया । परन्तु मुझे पूरी
रात नींद नहीं आयी । सुबह उठाकर सुरेंद्र
के साथ पार्क गया और सुरेंद्र को सब बताया । उसने जैसे तैसे मुझे
समझाया कि भूल जा ये सब और अपने पढाई पे ध्यान लगा । इतना सब होने के बाद
पढाई में मन कहाँ लगने वाला था । दिल को समझाना अतयंत कठिन था । परन्तु जैसे तैसे मनाया । अपने पढाई पे मन लगाने लगा । वार्षिक परीक्षा हुआ । मै कक्षा में दूसरे स्थान प्राप्त किया । पापा बोले दूसरा क्यों
पहला लाना चाहिए पर चलो कोई बात नहीं । अब दिवाली को छः
महीने हो गए थे । एक दिन मैं अपने मित्र के घर गया था । बैठकर अखबार पढ़ रहा था और बातें कर रहा था । तभी दुनेश वहा आई गणित के सवाल मेरे मित्र से पूछने
के लिए आयी । वह गणित में कमजोर थी तो किसी तरह सवाल बता पायी । मैं अख़बार पढ़ते हुए यह वाक्या देख रहा था । मेरे मित्र ने
दुनेश को बताया कि मेरे से गणित में पढ़ लिया करें क्योकि मैं गणित में अच्छा था । अगले दिन मुझे मेरी मित्र बुलाने आयी । तुझे दुनेश मेरे घर में बुला रही है । इतना सुनता ही मेरे दिमाग में हज़ारो सवाल दौड़ने लगा । वह मुझे क्यों बुला
रही है । उसको मेरे से क्या काम होगा । बुलाई थी तो जाना तो था ही । खैर मै पहुँच गया । जब मै पहुँचा तो वह पहले से वहाँ बैठी थी । मेरे मित्र ने कहा कि तुम इसे गणित पढ़ा दो । मैंने कहा तेरी बात मै क्यों मानु जिसे पढ़ना है वो तो कुछ
बोल ही नहीं रही है । उसने कहा कि आप मुझे गणित पढ़ा देंगे । मैंने कहा मै तुम्हे क्यों पढ़ाउ तुम मेरी हो कौन
? उसने कहा एक दोस्त
के नाते भी नहीं पढ़ा सकते है । मैंने पूछा कि
ट्यूशन लगा लो कही । बोली नहीं लगा सकती क्योकि मेरे पिताजी ट्यूशन
का अतिरिक्त भार नहीं उठा सकते है । ठीक है कल से मै तुम्हे रोज़ एक घंटा गणित पढ़ा दूंगा । पर तुम्हारे या मेरे घर में नहीं । बोली ठीक है इसी घर
में पढ़ा देना मै आपके दोस्त के माँ से बात कर लुंगी । पढ़ने पढ़ाने का सिलसिला चालू हो गया । जैसे जैसे दिन बीतता गया मै पहले से ज्यादा उसके प्रति
आकर्षित होते गया । हम दोनों के बीच इतनी अच्छी समन्वय बन गया था । सब यही समझने लग गये थे कि हम एक दूसरे से प्यार
करते थे । यही बात मेरे मित्र को रास नहीं आयी । उसने अपने बहन के साथ मिलकल दुनेश के माँ को
सबकुछ बता दिया । और दुनेश के माँ को मेरे प्रति बहुत ज्यादा भड़का
दिया । उस दिन मुझे पता चला कि ऐसे दोस्त से अच्छा
दुश्मन होता है जो कम से कम पीछे से बुराई तो नहीं करता है । दुनेश के माँ ने मेरे से पढ़ने और मिलाने से साफ़ मना कर दिया । दुनेश फिर भी मेरे से मिलाती थी । मेरे गली मोहल्ले के सारे दोस्त उसको भाभी बोलते थे । पर हम दोनों के बिच प्यार के इज़हार अभी तक नहीं हुआ था । ये बात दुनेश के माँ को पता चल गया । दुनेश के माँ ने मुझे बुला के बहुत डांटा और कहा मेरी बेटी
से मिलना और बात करना बंद कर दे वरना मै तुम्हारे पापा से बोलूंगी । मैंने सोचा किसी को कुछ नहीं बोलेगी । मेरे पैरो तले जमीन तो तब निकल गयी जब दुनेश कि माँ ने मेरे
बड़े भैया से बोला मुझे समझने के लिए । इस सब के बाद मैंने
निर्णय लिया कि दुनेश से सारी बात करके पता लगाऊ आखिर उसके मन में क्या है ?
दुनेश से बात करने पर
पता चला कि उसके मन में ऐसा कुछ नहीं है । वह सिर्फ एक दोस्त
समझती है । कहा खबरदार कभी ऐसा सोचा भी तो । इस बार आँखों से आंसू नहीं पर दिल से आह निकल रही थी । उसके बाद आजतक मैंने
कभी उसे नहीं देखा । जिसके दिल में यदि आपके लिए प्यार नहीं है तो चाहे कुछ भी
कर लो प्यार कभी नहीं हो सकता ।
आज पता चला मेरा
प्यार अधूरा था और अधूरा ही रह गया । क्योकि एक तरफा
प्यार कभी पूरा नहीं हो सकता । परन्तु प्यार एक
तरफा हो या दो तरफा प्यार तो प्यार होता है । जो भुलाने से भी
नहीं भुलाया जा सकता है । तभी तो ज़िन्दगी के अनेक पड़ाव पे उस प्यार कि याद
आती रहती है । शायद इसलिए प्यार का पहला अक्षर अधूरा है ।