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मंगलवार, 5 मई 2020

हे जीवन संगिनी

हे जीवन संगिनी
मन की कोमल भावनाओं को समेटता हूँ
लो मै, आज फिर कविता लिखता हूँ
किस शब्द में फ़िरोकर उनका बखान करूँ
जितना भी व्याखित करूँ कम करूँ
कहने को सृष्टि की रचना का एक रूप है 
पर समस्त रचना उनकी एक धूप है  l १ l
                        रात की रानी सा खिलता चेहरा
                        मधु-कमल सा सुघंधित धरा
                        सुशोभित केश से बंधा जुड़ा
                        देख के, अन्तः मन से निकल पड़ा
                        इस रचियता के हे रचनाकार
                        तुम्हे मेरा सत-सत सतकार
                        रचकर तुमने उनको भू-पर
                        किया समस्त प्राणी पर उपकार   l  २ l
सूर्य-किरण सा खिलता यौवन
चाँद की छटा बिखेरता मन
ढृढ़-संकल्पी महानुभाव
ढूंढ रही है मन का भाव
आसीम कृपा करेगी उनका
सथचर बनेगी जिनका
मन की कोमल भावनाओं को समेटा हूँ
लो मै, आज फिर कविता लिखा हूँ     l  ३ l


पाठको से निवेदन है कि "सहज संगिनी" कविता  कैसी लगी, अपनी राय टिपण्णी करके अवस्य बताएं l  





13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर लिखा है भाई मजा आ गया।
    (बाबा)

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  2. बेहतरीन रचना ,बहुत बहुत बधाई नमस्कार

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