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शुक्रवार, 29 मई 2020

बच्चपन का प्यार



बच्चपन का प्यार

       प्यार शब्द के अनुभुती से ही जीवन में उमंग की लहर दौड़ जाती है प्यार का पहला अक्षर ही अधुरा है परंतु अधुरा प्यार ज़िन्दगी मे कभी नहीं भुलाया जा सकता है जीवन के अनेक पड़ाव पर पहले प्यार की याद आती रहती है l आज मैंने दो बच्चों को जब कहते सुना "मुझे तुमसे प्यार है" तो मुझे अपने स्कूल के दिनों की याद आगयी l बात उन दिनों की है जब मै छठी कक्षा मे पढ़ता था l मई का महिना था और मै सुबह उठ कर बैठा था जैसे एक अवाक मुरत हो l यह प्रतीदिन के दिनचर्या से भिन्न था l मैं अपने रात्रि के सपने के बारे मे सोच रहा था कि वो स्वपन सुन्दरी कौन थी ?  जिसे मैने सपने मे देखा था l   उसके काले लम्बे बाल, झील सी आँखें, खीलता कमल सा चेहरा, जो देखने मे बिल्कुल स्वर्ग की अफ़सरा लग रही थी आज से पहले मैने इतनी खूबसूरत लड़की कभी नहीं देखी थी आँखो के सामने उसका चेहरा घूम रहा था परंतु याद नहीं आरहा था कि है कौन ?  मेरे पापा काम पे जाते समय बोले कि जा के मुह हाथ धो ले और नास्ता बना के रख दिया है खा लेना, मै जा रहा हूँ खाना मेरे चाचा और पापा ही बनाते थे क्योंकि मेरी माँ गॉंव में रहती थी मैं उसके बारे मे सोचते हुये मुह हाथ धोकर नास्ता कर रहा था लेकिन दिमाग मे उसी का चेहरा घूम रहा था l नास्ता करने के बाद मै अपने दोस्त सुरेंद्र  के पास गया और सारी बात बता दिया उसने कहा सपना था भुल जा और अपने स्कूल का होमवर्क कर ले जाकर l मैने कहा अभी मै होमवर्क नहीं करूंगा, चल बाहर चलते है हम हमेशा खाली समय मे, गली मे लगे ऑटो मे बैठकर घंटों बातें करते रहते थे रोज़ की तरह उस दिन भी ऑटो मे जाकर बैठ गये और बातें करने लग गये करीब आधे घंटे बाद एक लड़की अपने छोटे भाई के साथ उसी ऑटो के बगल मे बात कर रही थी l मेरी नज़र उस पर पड़ी और हट नहीं रही थी l जब वो वहाँ से चली गई तो उसके जाते ही मैने सुरेंद्र से कहा " मैने इस लड़की को कही देखा है पर कहा ये याद नहीं आ रहा है" फ़िर मुझे याद आया ये तो वही सपने वाली लड़की है मुझे सपने और हक़िक़त, दोनों पे यकीन नहीं हो रहा था कि किसी के साथ ऐसा भी हो सकता है मैने सुरेंद्र से कहा कि मुझे इस लड़की से दोस्ती करना है चल उसे ढूँढते है l  इधर उधर काफी ढूँढा l भरी दोपहर मे करीब एक घंटे तक ढूंढापर नहीं मिली थककर हम दोनों घर आगये रोजाना अपना काम करने के बाद जब भी मुझे समय मिलता तो मै उसे ढूँढने गोलियों मे निकल जाता पर वो नहीं मिलती मै हमेशा सुरेंद्र से एक ही बात पुछता था ।  वह लड़की कब मिलेगी l  उसका एक ही जबाब होता मिल जयेगी l एक दिन मै जब शाम को गली मे आरहा था तो वह लड़की  जाते हुये दिखी l  मैं उसके पिछे पिछे जाने लगा l मुझे डर भी लग रहा था कि कोई कुछ कह ना दें l वह हमारी गली के आखिरी के पहले वाले  मकान मे रहती थी l मै खुशी के मारे समाँ नहीं रहा था जैसे मुझे मेरी मंज़िल का ठिकाना मिल गया आकर सबसे पहले मैने सुरेंद्र को ये बात बताया l फिर तो दिन रात उसी के बारे मे सोचता रहता था मेरा ज्यादा समय गली मे बितता था हमेशा इंतज़ार मे रहता था कि कब वह इधर से गुज़रे और उसकी एक झलक मिल जाए l जब भी उसे देखता था दिल को एक सकून मिलता था l मुझे समझ नहीं आरहा था ये क्या हो रहा है मैने सुरेंद्र से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है तो उसने बताया शायद तुझे प्यार हो गया है l इसे प्यार कहते है मुझे पता नहीं था पर मै उसके बात को मान लिया क्योंकि वह मेरे से ऊँची कक्षा में पढ़ता था l कुछ दिनों बाद मुझे उसका नाम पता चला "दुनेश" l


जीवन का एक सच्च पता चला था की अपने से ज्यादा भी किसी का नाम अच्छा लग सकता है ।  ऐसा लग रहा था की दुनेश एक नाम नहीं मेरे लिए पूरा संसार है ।  अब दिन रात सुरेंद्र से दुनेश के बारे में बातें करना ।  उसके बारें में सोचना मुझे अच्छा लगता था ।  उसके बारें में बातें करते करते कब समय बीत जाता पता ही नहीं चलता था ।  इसी तरह पाँच महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला ।   दिवाली आने वाली थी और मैंने सोच लिया था कि दिवाली के सुभ अवसर पर उसको अपने दिल कि बात बताऊंगा ।  मेरे कक्षा में पढ़ने वाली एक लड़की उसके पड़ोस में रहती थी । वह मेरी दोस्त थी ।   बड़ी मुश्किल से मैंने उसे अपना ग्रीटिंग कार्ड उसे देने के लिए राजी किया । अंततः वो मान गयी मेरा ग्रीटिंग कार्ड उस तक पहुंचाने के लिए ।  पर मुझे क्या मालुम था जिसे मैं हमदर्द समझ रहा था,  दोस्त समझ रहा था वही दोस्त के रूप में दुश्मन थी ।  मैंने खुद से एक बहुत ही प्यारा ग्रीटिंग कार्ड बनाया ।  जिसने भी ग्रीटिंग कार्ड देखा, कहा मुझे दे दो परन्तु मैंने कहा नहीं ये किसी और के लिए बनाया है ।  मैंने किसी तरह ग्रीटिंग कार्ड अपने लड़की दोस्त को दे दिया दुनेश को देने के लिए ।  उसके बाद बड़ी बेसब्री से उसके जवाब का इंतज़ार करने लगा ।  मानो एक एक पल सदियों कि तरह बीत रहा था ।  शाम को अपने घर के बाहर गली में खड़ा था तब मेरी मित्र के साथ वो आती हुयी दिखी ।  मेरे दिल कि धड़कन तेज़ हो गयी ।  वह आयी और ग्रीटिंग कार्ड फारकर मेरे मुँह पे मारकर बोली तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं तुम्हारी दोस्त बनूंगी ।  और दोनों हसते हुए वहाँ से चली गयी ।  मेरे मुँह से एक शब्द तक नहीं निकला ।  पर मैं रो रहा था ।  मेरे आँखों से अश्रु के धारा बह रही थी ।  सब दिवाली मना रहे थे और मैं बैठकर गली में रो रहा था ।  सबने पूछा क्या हुआ उदास क्यों है ।  पर मैं क्या बताता ।  उस रात मै कुछ भी नहीं खाया और सोने चला गया । परन्तु मुझे पूरी रात नींद नहीं आयी ।  सुबह उठाकर सुरेंद्र के साथ पार्क गया और सुरेंद्र को सब बताया ।  उसने जैसे तैसे मुझे समझाया कि भूल जा ये सब और अपने पढाई पे ध्यान लगा ।  इतना सब होने के बाद पढाई में मन कहाँ लगने वाला था ।  दिल को समझाना अतयंत कठिन था । परन्तु जैसे तैसे मनाया ।  अपने पढाई पे मन लगाने लगा ।  वार्षिक परीक्षा हुआ ।   मै कक्षा में दूसरे स्थान प्राप्त किया ।  पापा बोले दूसरा क्यों पहला लाना चाहिए पर चलो कोई बात नहीं ।   अब दिवाली को छः महीने हो गए थे ।   एक दिन मैं अपने मित्र के घर गया था ।  बैठकर अखबार पढ़ रहा था और बातें कर रहा था ।  तभी दुनेश वहा आई गणित के सवाल मेरे मित्र से पूछने के लिए आयी ।  वह गणित में कमजोर थी तो किसी तरह सवाल बता पायी   मैं अख़बार पढ़ते हुए यह वाक्या देख रहा था ।  मेरे मित्र ने दुनेश को बताया कि मेरे से गणित में पढ़ लिया करें क्योकि मैं गणित में अच्छा था ।  अगले दिन मुझे मेरी मित्र बुलाने आयी   तुझे दुनेश मेरे घर में बुला रही है   इतना सुनता ही मेरे दिमाग में हज़ारो सवाल दौड़ने लगा ।  वह मुझे क्यों बुला रही है ।   उसको मेरे से क्या काम होगा   बुलाई थी तो जाना तो था ही ।  खैर मै पहुँच गया ।   जब मै पहुँचा तो वह पहले से वहाँ बैठी थी   मेरे मित्र ने कहा कि तुम इसे गणित पढ़ा दो ।   मैंने कहा तेरी बात मै क्यों मानु जिसे पढ़ना है वो तो कुछ बोल ही नहीं रही है   उसने कहा कि आप मुझे गणित पढ़ा देंगे   मैंने कहा मै तुम्हे क्यों पढ़ाउ तुम मेरी हो कौन ?  उसने कहा एक दोस्त के नाते भी नहीं पढ़ा सकते है ।   मैंने पूछा कि ट्यूशन लगा लो कही   बोली नहीं लगा सकती क्योकि मेरे पिताजी ट्यूशन का अतिरिक्त भार नहीं उठा सकते है ।  ठीक है कल से मै तुम्हे रोज़ एक घंटा गणित पढ़ा दूंगा ।   पर तुम्हारे या मेरे घर में नहीं ।  बोली ठीक है इसी घर में पढ़ा देना मै आपके दोस्त के माँ से बात कर लुंगी   पढ़ने पढ़ाने का सिलसिला चालू हो गया   जैसे जैसे दिन बीतता गया मै पहले से ज्यादा उसके प्रति आकर्षित होते गया   हम दोनों के बीच इतनी अच्छी समन्वय बन गया था ।   सब यही समझने लग गये थे कि हम एक दूसरे से प्यार करते थे  ।   यही बात मेरे मित्र को रास नहीं आयी ।   उसने अपने बहन के साथ मिलकल दुनेश के माँ को सबकुछ बता दिया   और दुनेश के माँ को मेरे प्रति बहुत ज्यादा भड़का दिया ।   उस दिन मुझे पता चला कि ऐसे दोस्त से अच्छा दुश्मन होता है जो कम से कम पीछे से बुराई तो नहीं करता है ।   दुनेश के माँ ने मेरे से पढ़ने और मिलाने से साफ़ मना कर दिया ।   दुनेश फिर भी मेरे से मिलाती थी ।   मेरे गली मोहल्ले के सारे दोस्त उसको भाभी बोलते थे ।   पर हम दोनों के बिच प्यार के इज़हार अभी तक नहीं हुआ था    ये बात दुनेश के माँ को पता चल गया   दुनेश के माँ ने मुझे बुला के बहुत डांटा और कहा मेरी बेटी से मिलना और बात करना बंद कर दे वरना मै तुम्हारे पापा से बोलूंगी ।   मैंने सोचा किसी को कुछ नहीं बोलेगी ।   मेरे पैरो तले जमीन तो तब निकल गयी जब दुनेश कि माँ ने मेरे बड़े भैया से बोला मुझे समझने के लिए ।   इस सब के बाद मैंने निर्णय लिया कि दुनेश से सारी बात करके पता लगाऊ आखिर उसके मन में क्या है दुनेश से बात करने पर पता चला कि उसके मन में ऐसा कुछ नहीं है   वह सिर्फ एक दोस्त समझती है   कहा खबरदार कभी ऐसा सोचा भी तो   इस बार आँखों से आंसू नहीं पर दिल से आह निकल रही थी  उसके बाद आजतक मैंने कभी उसे नहीं देखा     जिसके दिल में यदि आपके लिए प्यार नहीं है तो चाहे कुछ भी कर लो प्यार कभी नहीं हो सकता 
आज पता चला मेरा प्यार अधूरा था और अधूरा ही रह गया    क्योकि एक तरफा प्यार कभी पूरा नहीं हो सकता   परन्तु प्यार एक तरफा हो या दो तरफा प्यार तो प्यार होता है   जो भुलाने से भी नहीं भुलाया जा सकता है    तभी तो ज़िन्दगी के अनेक पड़ाव पे उस प्यार कि याद आती रहती है   शायद इसलिए प्यार का पहला अक्षर अधूरा है    




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